Monday, August 28, 2017

परछाई

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ढलती शाम में,
आज बिजली कौंधी थी
मेरे घर के पास
तेरे परछाई को मैंने महसूस किया था !!

नीरज कुमार गुप्ता
  २७/०८/२०१७ 

Saturday, August 26, 2017

पहली बार


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देखा था,पहली बार आपको,

कमरे में,
धीरे धीरे आते हुए,

कुछ पल बाद,
बैठी मेरे पास
सामने वाले सोफे पर !

देखा था,पहली बार आपको,
मुस्कुराते हुए !

शर्म भरी आँखों से,
आपने मुझे निहारा था,
 गौर किया था,
मैंने एक बार !

देखा था,पहली बार आपको,
मैंने साड़ी में !

माथे से साड़ी का
पलू का सरकना !
बड़े अदब से,
पलू को सर पर रखना ,
अच्छा लगता था !

देखा था,पहली बार आपको,
सुकून भरी आँखों से !

जब पास खड़ी हुयी मेरे,
आपके हांथो का मेरे हांथो का
श्पर्श करना,
कुछ कह रही थी दिल की धड़कने !

वो पल भर की,
छोटी सी मुस्कान
कितना सुकून देती है मुझे !


देखा था,पहली बार आपको,
अपना बनाने के लिए !


                                नीरज कुमार गुप्ता
                                   ०७/०८/२०१७ 

Wednesday, July 26, 2017

'दाग'


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मिला था, एक फोटो !
था, दीवाना उसका !

पीली साड़ी में,
काले लम्बे बालों में,
शांत आँखों में,
ओठों पर छोटी सी,
मुस्कान में,

खड़ी थी 'वो' !
पास मेरे,
पड़े फोटो में  !

मिला था, एक फोटो,
था दीवाना उसका !

'दाग' हो चरित्र पर
तो,
मिटा कर भी नहीं मिटते !

पर कुछ 'दाग',
होते है अच्छे  !
छिप जाते है,
'उनके ' मुस्कराने पर  !

छोड़ जाते है,
कुछ सिलवटें, जाते-जाते,
जो गालो पर अच्छे लगते है  !!



                                                   नीरज कुमार गुप्ता
                                                      22/07/2017

Monday, May 9, 2016

माँ

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आज भी बुरी नज़रो से,
महफूज़ हु !
माँ तेरे 'उस' नैनो के काजल से !!

सामना करता हुँ,
परेशानियों का डट कर !
माँ तेरे 'उस' दूध के घुट से !!

थक के हारा नहीं,
आज भी !
माँ तेरे 'उस' आँचल के छाव से !!

धीरे- धीरे सही,
आगे बढ़ रहा हुँ !
माँ तेरे 'उस' चरणों के ,
आशीर्वाद से !!

              नीरज कुमार गुप्ता
                 08-05-2016 

Tuesday, November 10, 2015

दादी


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छोटा था,याद नहीं है,

कब पापा के 'माई' को,
अपने दादी को गांव छोड़ कर आया था !

इतना याद है,हर छठ पूजा में,
दादी साथ होती !

जब साथ बैठती,
मेरे बचपन की बात बताती,
कैसे मिसा,मला था मैंने तुमको,
गोद में लिए गॉव घुमाया करती थी मैं,
शुबह गंगा नहाने निकली तो,
तू भोर में जागकर,
साथ जाने की जिद्द करता !

वो आँचल के पलु,
के गाँठ याद है मुझे,
जिसमे कुछ सिक्के खनकते थे,
जिसे मैं चुरा लिया करता था !

बहुत दिनों बाद,
कुछ दिन साथ बिताया था मैंने,
मेरे कही जाने से,
तुम चिंतित हो जाती,
सबसे पूछा करती,
'बबुआ ' कब आएगा !

जब तुम बीमार थी,
मिलने गया था मैं !
कपकपाते हांथो से मेरा हाँथ पकड़कर,
लड़खड़ाते शब्दों से सबका हाल जाना था,
आँखे भर आई थी,
तेरे लडखडाते शब्दों को सुनकर !

अनजान था मैं,
ये लड़खड़ाते शब्द युही रुक जायेगा !

पापा की 'माई'
मेरी दादी हमेशा याद आएगी  !!

                               
                           नीरज कुमार गुप्ता
                            02-11-2015
                             ( बलिया से )  

Thursday, July 2, 2015

अन्जान रिश्ते
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कुछ अन्जान रिश्ते बिखरे थे,
कोशिश की थी समेटने  की.
कुछ बिखरते गए,
कुछ और अन्जान होते गए !
कुछ रिश्ते पराये होते गए,
तो कुछ पराये अपने होते गए !

कुछ अन्जान रिश्ते बिखरे थे,
कोशिश की थी समेटने  की !

                                           नीरज कुमार गुप्ता
                                                 १-०७-१५ 

Thursday, June 18, 2015

              *  मुश्किलें  *

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जब छोटा था,मुश्किलें भी बहुत थी
बस अर्थ न मालूम थे,मुश्किलें के !

उम्र के साथ मुश्किलें भी बढ़ती गयी,
कुछ साथ आती गयी,कुछ साथ छोड़ती गयी !

था जवानी का दौर,जकड़ा था मुश्किलो का दौर !
निपट लिया था,मैंने मुश्किलो को आसानी से,
बस निकल गया था ये दौर !

कुछ ने पाठ पढ़ाया,कुछ ने जीवन का दर्शन कराया !
साथ मेरा मुश्किलो का,
ठहर जाये तो अच्छा,न ठहरे तो और अच्छा !

मुसकुरा दिया मैंने,
मुश्किलो को देखकर,आधे लौट गए
कुछ बौनों की तरह !!

बस आदत सी हो गयी है,
तुझे देखकर मुस्कराने की !!

                                          नीरज कुमार गुप्ता
                                             १८-०६-२०१५ 

परछाई

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