............................................
............................................
छोटा था,याद नहीं है,
कब पापा के 'माई' को,
अपने दादी को गांव छोड़ कर आया था !
इतना याद है,हर छठ पूजा में,
दादी साथ होती !
जब साथ बैठती,
मेरे बचपन की बात बताती,
कैसे मिसा,मला था मैंने तुमको,
गोद में लिए गॉव घुमाया करती थी मैं,
शुबह गंगा नहाने निकली तो,
तू भोर में जागकर,
साथ जाने की जिद्द करता !
वो आँचल के पलु,
के गाँठ याद है मुझे,
जिसमे कुछ सिक्के खनकते थे,
जिसे मैं चुरा लिया करता था !
बहुत दिनों बाद,
कुछ दिन साथ बिताया था मैंने,
मेरे कही जाने से,
तुम चिंतित हो जाती,
सबसे पूछा करती,
'बबुआ ' कब आएगा !
जब तुम बीमार थी,
मिलने गया था मैं !
कपकपाते हांथो से मेरा हाँथ पकड़कर,
लड़खड़ाते शब्दों से सबका हाल जाना था,
आँखे भर आई थी,
तेरे लडखडाते शब्दों को सुनकर !
अनजान था मैं,
ये लड़खड़ाते शब्द युही रुक जायेगा !
पापा की 'माई'
मेरी दादी हमेशा याद आएगी !!
नीरज कुमार गुप्ता
02-11-2015
( बलिया से )